प्यार, पैसा, हिन्दी और चाँद का कुर्ता
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गणतंत्र दिवस पर उल्टा तीर पत्रिका की पेशक़श
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 8:48 am 7 टिप्पणियाँ
उल्टा तीर पत्रिका दिनकर आप सभी सुधि पाठकों को साधुवाद के साथ अर्पित हैं। आप सभी का रचनात्मक सहयोग ही हमारी सच्ची ताक़त है। उल्टा तीर पत्रिका का यह दूसरा अंक हमारा छोटा सा प्रयास है। उम्मीद कि आप सभी को यह प्रयास पसंद आएगा।
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 8:13 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमित के. सागर; उल्टा तीर
(पत्रकार एवं साहित्यकार बाबा स्व. श्री संपतराव धरणीधर मध्य भारत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं । हिन्दी साहित्य को बाबा ने अपने लहू से सिंचित किया है । बाबा ने अभावों में साहित्य साधना की है । गरीबी संघर्ष को उन्होंने करीब से देखा व् जिया किंतु वे साधना के पथ से हटे नही डिगे नही । आज़ादी के आन्दोलन में भी भाग लिया । हिन्दी साहित्य को अपनी कविता से समृद्ध किया । विश्व हिन्दी दिवस के इस अवसर पर उनकी अनमोल अद्वितीय साहित्य विरासत से दो रचनाये बाबा धरनीधर को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ सादर समर्पित है । साहित्य के इस मनीषी को उल्टा तीर परिवार हृदय की गहराई से याद करता है।)
आओ कुछ ऐसा कर लें
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 7:48 am 3 टिप्पणियाँ
(प्रेम परिहार अपनी साहित्यिक सक्रियता के लिए चिर परिचित है। उनकी संस्था द्वरा दिनकर जन्म शती वर्ष में विविध आयोजन किए गए । रामधारी सिंह दिनकर के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रेम परिहार का यह आलेख राष्ट्र कवि दिनकर को श्रद्धा सुमन हैं)
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 7:37 am 1 टिप्पणियाँ
संक्षिप्त जीवन परिचय : ३० सितम्बर सन् १९०८ ई0 में बिहार प्रांत के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में जन्म २४ अप्रैल, १९७४ ई0. देहावसान.
पिता : श्री रवि सिंह
माता : मनरूप देवी
प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ: रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतिज्ञा (सभी काव्य) अर्धनारीश्वर, वट पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध): देश विदेश (यात्रा) आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हैं.
प्रमुख सम्मान: सन 1959 में पद्मभूषण (भारत सरकार द्वारा) सन 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने दिनकर जी को डी.लिट. की मानद उपाधि से सुशोभित किया उर्वशी पर इन्हे 1972 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 7:27 am 0 टिप्पणियाँ
लेबल: **श्रद्धांजलि
(दिल्ली दूरदर्शन में कार्यरत लैंसमेन प्रेम परिहार का अधिकांश समय तस्वीरों , सामयिक हलचल को कैद करने में बीतता है । इतनी व्यस्तता के बाद भी वे लेखन और समाज सेवा के कार्यों में भी उतने ही सक्रिय हैं । हिन्दी कवि औरलेखक के रूप में भी उनकी प्रसिद्धि है । प्रेम परिहार हिन्दी को ह्रदय की चेतना की चिंगारी मानते हैं । )
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 6:49 am 2 टिप्पणियाँ
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 6:37 am 1 टिप्पणियाँ
लेबल: दिनकर और चिंगारी
(डा० महेंद्रभटनागर हिन्दी में उच्चकोटि के लेखन के लिए अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । इस आलेख में उन्होंने दिनकर जी की बाल्य लेखनी पर गहन आलोक डाला है । साथ ही दिनकर की बाल्य रचनाओं के विषय में काफ़ी कुछ लिखा है)
‘दिनकर’ जी हिन्दी के उच्च-कोटि के यशस्वी कवि हैं। विषय-वैविध्य उनके काव्य की एक विशेषता है। इसके अतिरिक्त उनके काव्य का स्वरूप भी विविधता लिए हुए है। एक ओर तो उनकी रचनाएँ भाव-धारा की दृष्टि से इतनी गहन हैं तथा साहित्यिक सौन्दर्य से वे इतनी समृद्ध हैं कि उनका आस्वाद्य केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के पाठक ही कर सकते हैं; तो दूसरी ओर उनका काव्य इतना सरल-सरस है कि जो समान्य जनता के हृदय में सुगमता से उतरता चला जाता है। उनके ऐसे ही साहित्य ने देश के नौजवानों में क्रांति की भावना का प्रसार किया था। ऐसी रचनाओं में वे एक जनकवि के रूप में हमारे सम्मुख आते हैं। पर, ‘दिनकर’ जी का काव्य-व्यक्तित्व यहीं तक सीमित नहीं है। उन्होंने किशोर-काव्य और बाल-काव्य भी लिखा है। यह अवश्य है कि परिमाण में ऐसा काव्य अधिक नहीं है तथा इस क्षेत्र में उन्हें अपेक्षाकृत सफलता भी कम मिली है।
बाल-काव्य लिखना कोई बाल-प्रयास नहीं तथा वह इतना आसान भी नहीं। बाल-काव्य के निर्माता का कवि-कर्म पर्याप्त सतर्कता और कौशल की अपेक्षा रखता है। कोई भी प्रगतिशील और स्वस्थ राष्ट्र अपने बच्चों की उपेक्षा नहीं कर सकता। जिस भाषा के साहित्य में बाल-साहित्य का अभाव हो अथवा वह हीन कोटि का हो; तो उस राष्ट्र एवं उस भाषा के साहित्यकारों को जागरूक नहीं माना जा सकता। बच्चे ही बड़े होकर देश की बागडोर सँभालते हैं। वे ही देश के भावी विकास के प्रतीक हैं। उनके हृदय और मस्तिष्क का संस्कार यथासमय होना ही चाहिए।
यह कार्य साहित्य के माध्यम से सर्वाधिक प्रभावी ढंग से होता है। इसके अतिरिक्त साहित्य से बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन भी होता है। वह उनकी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की भी पूर्ति करता है। इससे उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास होता है; जो अन्ततोगत्वा राष्ट्र अथवा मनुष्यता को सबल बनाने में सहायक सिद्ध होता है।
जो कवि सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सचेत हैं तथा जो अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं, प्रतिबद्ध हैं, वे बाल-साहित्य लिखने के लिए भी अवकाश निकाल लेते हैं। विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर जैसे अतल-स्पर्शी रहस्यवादी महाकवि ने कितना बाल-साहित्य लिखा है; यह सर्वविदित है। अतः ‘दिनकर’ जी की लेखनी ने यदि बाल-साहित्य लिखा है तो वह उनके महत्त्व को बढ़ाता ही है।
बाल-काव्य विषयक उनकी दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई हैं —‘मिर्च का मजा’ (‘ज़ा' नही!) और ‘सूरज का ब्याह’। ‘मिर्च का मजा’ में सात कविताएँ और ‘सूरज का ब्याह’ में नौ कविताएँ संकलित हैं।
’मिर्च का मजा’ में एक मूर्ख काबुलीवाले का वर्णन है, जो अपने जीवन में पहली बार मिर्च देखता है। मिर्च को वह कोई फल समझ जाता है —
प्रस्तुतकर्ता Amit K Sagar पर 6:22 am 2 टिप्पणियाँ
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