मंगलवार, 23 सितंबर 2008

शहीदों की कुर्बानी!

युवा कवि अमित सागर की रचना.
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जलता हुआ पतंगा चीखा, जलता क्यूँ शमशान है
भारत की आज़ादी बोली, बेबस क्यूँ इंसान है



याद करो जवानी को वीरों की कुर्बानी को
जलता हुआ पतंगा थे यु.पी. थे दरभंगा थे
सभी प्रान्तों का गुस्सा गोरो मैं भरा था भूसा
कहाँ गए शेखर-सुभाष कहाँ गए भगत-अशफाक
कहाँ गई है वो ज्वाला जो हर जिगर मैं होती है
भारत की आज़ादी क्यूँ अब फूट-फूट कर रोती है

क्या जवानी थी उनकी जो हंसकर फांसी चढ़ गए
चम्बल के डाकू थे सारे आज जो नेता बन गए
देशभक्ति के नाम पर जो देश लूट कर खाते है
संसद के हत्यारे भी अब देशभक्त कहलाते हैं
आतंकवाद फसलें जब से अपने खेतो मैं बूती हैं
भारत की आज़ादी क्यूँ अब फूट-फूट कर रोती है

चारों तरफ़ हिंसा भड़की मचा हुआ कोहराम है
कमरतोड़ महंगाई का उफना क्यों तूफ़ान है
रिश्वत लेते पकड़ा था जो रिश्वत देकर छूट चला
न्यायलय की चोखट पर भी सारा काला झूंठ चला
नारी बेबस होकर के आज आस्मत खोती है
भारत की आज़ादी क्यूँ अब फूट-फूट कर रोती है

अभी बढाओ हाथ तुम कल न फ़िर ये पल होगा
परलय के आँचल में जीवन कैसा अपना कल होगा
कतरा-कतरा लहू बहाकर जो जवानी चिल्लाएगी
पुनर्जन्म होगा भारत का नई आज़ादी आएगी

शहीदों की कुर्बानी को व्यर्थ नही होने देंगे
भारत की आज़ादी को कभी नही रोने देंगे
भारत की आज़ादी को कभी नही रोने देंगे
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अमित सागर बचपन से ही कवि सम्मेलनों में शिरकत कर रहे हैं। इनकी कविता में मानवता को जगाये रखने का गहरा भावः मिलता है।
लेखक का ब्लॉग:

http://sagarami.blogspot.com


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