सोमवार, 22 सितंबर 2008

उज्जवल है हिन्दी का भविष्य

  • कुलबीरसिंह
लेखक 'साधना चैनल' में कार्यरत हैं. डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना शौक है.

हिन्दी नाम सुनते ही सर्प्रथम अपनी भाषा अर्थात अपनापन का अनुभव होता है. हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है. जिस प्रकार किसी राष्ट्र की सम्प्रभुता एवं स्वाभिमान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज एवं राजचिन्ह होता है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र की संस्कृति एवं भाषा भी उसके गौरव और अस्मिता की प्रतीक होती है. भारत बहुभाषामयी राष्ट्र है. विस्तृत भू भाग वाले इस राष्ट्र में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर बह्मपुत्र तक अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती हैं किंतु सांस्कृतिक द्रष्टि से भारत 'एक इकाई है' १४ सितम्बर, १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी. इसलिए हम भारतीय प्रत्येक वर्ष १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं लेकिन आज हिन्दी की उपेक्षा हो रही है अतः हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर हिन्दी के विषय में लिखा जाना जरूरी हो चला है.


भारत एक महान देश है. जो सभ्यता संस्कृति, आदर्शों, नैतिक मूल्यों से सम्रद्ध है. जहाँ प्रत्येक नागरिक को अपना मत प्रकट करने की स्वतंत्रता है. अंग्रेजो की दासता से भारत १५ अगस्त १९४७ को स्वतन्त्र हो गया साथ ही प्रत्येक नागरिक भी स्वतन्त्र हो गया. चाहे वह मूल्यों, आदर्शों, भाषा, व्यवसाय या एनी क्षेत्र की स्वतंत्र की विषय हो. चूँकि हम बात आज भाषा के सन्दर्भ में-हिन्दी के सन्दर्भ में कर रहे हैं तो ये विषय प्रमुख है.


भाषा! भाषा वह साधन है जो विचारों को लिखित व् मौखिक दोनों रूपों मिएँ प्रकट करती है. अतः भाषा ही मानव की विचारधारा का आधार है चाहे वह अंग्रेजी, उर्दू, हिन्दी, फारसी कुछ भी हो. हिन्दी रास्त्र भाषा है और अंग्रेज़ई हमारी अंतर्राष्ट्रीय भाषा. वर्तमान में हिन्दी भाषा की जो उपेक्षा हो रही है वो निंदनीय है. जहाँ भाषा को प्रत्येक कार्य का आधार बनाना चाहिए वहाँ हम अंग्रेजों की देन अंगरेजी भाषा को आज जीवन का आधार बना रहे हैं. क्या यह सही है. अगर येसा ही चलता रहा तो वे दिन दूर नहीं जब पुनः अंग्रेजों का येसा राज भारत पर होगा. वर्तमान में व्यवसाय, तकनीकी, वैज्ञानिक प्रणाली और न जाने अनगिनत कार्यों में अंग्रेजी की आवश्यकता है और इसके लिए अंग्रेजी सीखना भी आवश्यक है लेकिन मात्रभाषा का अपमान किसी घोर विनाश का संकेत है. आज हिन्दी बोलकर लोग अपना अपमान समझते हैं किसी भी स्थान पर चाहे वह सरकारी हो या सार्वजनिक. एक अनपढ़ व्यक्ती की टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलते हुए देखा जा सकता है. कहीं भी जाएँ अगर आप अंग्रेजी जानते हैं तो आप श्रेष्ठ हैं नहीं तो आपको हीन भाव से देखा जाता है. आपको हीन, अनपढ़ निम्न श्रेणी का समझ कर आपका अपमान होता है. "यहाँ किसी एक विशेष व्यक्ति की ओर संकेत नहीं, अपितु समस्त मानव जाति की बात है."

येसा क्यों होता है. हिन्दी बोलने वाला ही उपेक्षा के शिकार क्यों होता है? जहाँ भारत स्वतन्त्र देश है वहाँ लोगों को भाषा की स्वतंत्र होते हुए भी आम आदमी को मानसिक यातना क्यों झेलनी पढ़ती है. अगर एक व्यक्ति हिन्दी बोलने के प्रण करता है तो उसे हर प्रकार से दबा कर उसका प्रण भंग कर दिया जता है, येसा क्यों? यह बात एक वर्ग के लिए नहीं अपितु सभी वर्गों- चाहे नर, नारी, देशी या विदेशी हो.


मनुष्य चाहे तो क्या नहीं कर सकता यदि वह हिन्दी को जन-जन तक पहुँचाना चाहे तो उसका प्रचार कर सकता है. शायद प्रयासरत हिन्दी पुनः अपना खोया हुआ सम्मान वापस प्राप्त कर सके! लेकिन सिर्फ़ हिन्दी दिवस मनाकर इस सम्मान को मनाकर इस सम्मान को प्राप्त नहीं किया जा सकता. इस कार्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा. विशेष रूप से मीडया जगत को. आज प्रत्येक चैनल हिन्दी में कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा है लेकिन कहीं न कहीं हिन्दी पीछे है, अभिनेता फ़िल्म तो हिन्दी में बनाते हैं लेकिन अंग्रेजी की शान को बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते. वे क्यों भूल जाते हैं कि ये करोड़ों की जनता हिन्दी भाषा को ही जीवन के आधार मानती है. यदि वे चाहें तो हिन्दी को उसका खोया सम्मान लौटा सकते हैं. येसा नहीं है कि सरकार ने हिन्दी के लिए काम नहीं किया. सरकार भरसक प्रयास किया बेशक राजनीतिक रूप से. यहाँ अद्भुत तत्थ्य को उजागर करना आवश्यक है. विदेशी लोग हिन्दी सीखने के लिए भारत आते हैं और हिन्दी भाषा को अच्छा मानते हैं. लेकिन कुछ भारतीय यैसे हैं जो व्यव्साय्काल के अतिरिक्त भी अंग्रेजी को प्रधानता देते हैं. विदेशों में रहना उनकी मजबूरी या शौक जो भी हो लेकिन वे ही भारतीय हिन्दी बोलने में अपमान के अनुभव करते हैं. क्या हिन्दी सीखकर एक बड़ा आदमनी नहीं बना जा सकता! धन दौलत नहीं कमा सकता? येशो-आराम नहीं पा सकता? जो अंग्रेजों से ही मिल सकता है! अंत में प्रत्येक नागरिक को उसका कर्तव्य याद दिलाते हुए हिन्दी के सम्मान को कायम रखने की याचना करते हुए इस लेख को समाप्त करता हूँ। साथ ही आशा करता हूँ कि भविष्य में हिन्दी का सम्मान होगा।


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