हिन्दी भाषा के मर्मज्ञ रामधारी सिंह दिनकर
(प्रेम परिहार अपनी साहित्यिक सक्रियता के लिए चिर परिचित है। उनकी संस्था द्वरा दिनकर जन्म शती वर्ष में विविध आयोजन किए गए । रामधारी सिंह दिनकर के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रेम परिहार का यह आलेख राष्ट्र कवि दिनकर को श्रद्धा सुमन हैं)
दिनकर तुम दिनकर हिन्दी के, भारत के माथे की बिंदी.
मात्रभाषा के प्रबल साराथी, 'प्रेम' धन्य ध्वजा फहराए हिन्दी।
मात्रभाषा के प्रबल साराथी, 'प्रेम' धन्य ध्वजा फहराए हिन्दी।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरुस्कृत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने साहित्य के आकाश में अपनी विशेष उपस्तिथि प्राप्त की. बचपन से लेकर अन्तिम पढाव तक दिनकर आकाश के सूर्य की तरह चमकते रहे और कभी मेघाच्छारित होने से छिप भी गए.
मन के अन्दर की व्यथा को शब्दों में चित्रित कर पाना आसान नहीं होता. मैंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जन्म-स्ताब्धी समारोह के अंतर्ग अनेक प्रदेशों में उनके सम्बन्ध में सूना समझा और पढ़ा तो एक इन्द्रधनुष जैसी रंगीन घटा उभरकर मानस में विभिन्न रंगों को परिभाषित करती हुई प्रतीत हुई. हारे को हरिनाम उनकी कृतियों में अलग स्थान रखती है. विभिन्न विधाओं में शब्दों के चितेरे अपना सर्वस्व चिंतन जन मानस के समझ प्रस्तुत किया है. जीवन विभिन्न चरणों से होकर गुज़रता है इन सबमें मन की परिस्तिथियाँ बदलती रहती हैं. मनुष्य अपनी बात अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से व्यक्त करता है. एक विचार पाठकों के साथ बाँट लेना उचित समझता हूँ. पूर्व की कहावत है: 'जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि'
कवि की रंगभूमि कविता होती है और अपने मानस की अभिव्यक्ति वह शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करता है. मुझे लगता है कि कवि के अनुभव उसे सार्थक दशा दिशा और संभावनाएं प्रदान करते हैं. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर सूर्य के सामान प्रकाशित कवि के समान परिभाषित और अनुभ के सार्थक दिशा के राही एवं लक्ष्य के साधक रहे हैं और हम अगली पीढी के पथिकों को उनकी रचनाओं पर मात्र जनस्ती पर ही नहीं हमेशा ही संवाद करना चाहिए.
(प्रेम परिहार। सी पी सी दूरदर्शन दिल्ली)
1 टिप्पणियाँ:
प्रेम जी तो वास्तव मे हिन्दी साहित्य से गहरा लगाव रखते है इसलिए अक्सर उनके पास इस तरह की जानकारी होती ही है लकिन उनका अपना ज्ञान हम सब के साथ बाटना सराहनीय है इसके लिए उन्हें मे अपनी और उल्टा तीर दोनों की तरफ़ से धन्यवाद् देना चाहुगा
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