'दिनकर': आधुनिक हिन्दी के निर्माता
- कुलबीर सिंह
इनका जन्म सन १९०८ में मुजरे जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ। बी.ऐ. करने के बाद आपने कुछ दिनों के लिए प्राधानाध्यापक के पड़ पर कार्य किया. कुछ समय तक आप बिहार विश्वविद्यालय के अध्यक्ष भी रहे व् भागलपुर विश्वविध्यालय के हिन्दी विभाग के उपकुलपति भर रहे. भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार के रूप में एक लंबे समय तक हिन्दी के संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार के लिए आप कार्य करते रहे.
रामधारी सिंह 'दिनकर' जी को भारत सरकार ने 'पदं भूषन' से सम्मानित किया. इसके अतिरिक्त 'संस्कृति के चार अध्याय' नामक पुस्तक पर साहित्य अकादमी व् 'उर्वशी' पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला.
रचनाएं : इनका गद्य भी काव्य की ही भाँती अत्यन्त संजीव एवं स्फूर्तीमय है. इन्होने काव्य, संस्कृति एवं सामजिक जीवन आदि विषयोंपर बहुत ही मर्मस्पर्शी सामजिक लेख लिखे.
काव्य कृतियाँ : रेणुका, हुंकार, रसवंती, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, परशुराम की प्रतिज्ञा, हारे को हरिनाम.
गद्य कृतियाँ : संस्कृति के चार अध्याय, मिट्टी की ओर, शुद्ध कविता की खोज, साहित्य मुखी, काव्य की भूमिका, उजली आग, देश विदेश.
भाषा शैली : इनकी भाषा शैली की निम्न विशेषताएँ हैं;
१) सहजता व सजीवता- दिनकर जी विचारात्मक निवंध लिखने में विशेष रूप से सिद्ध हस्त हैं. इनके निबंधों में विचारों की सहजता व सजीवता का अद्भुत मेल है. इनकी भाषा भावों को स्पष्ट करने में पूर्णतः सफल है. इनकी रचनाओं में विचारों के सपष्टता व् अभिव्यक्ती की सहजता का सुंदर समन्वय देखनो को मिलाता है.
२) स्फुट वाक्यों का प्रयोग इनकी भाषा शैली की विशेषता है.
३) मिश्रित शब्दावली का प्रयोग दिनकर जी ने अपनी रचनाओं में किया है. खादी बोली के स्वाभाविक रूप के दर्शन उनके गद्य में होते हैं.
४) आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग.
५) दिनकर जी ने विवेचनात्मक शैली का प्रयोग करते हुए वर्णात्मक शैली को अग्रसर किया है.
६) अलंकारिक भाषा, सूक्तियों का प्रयोग तथा मुहावरों का प्रयोग इनकी भाषा शैली की विशेषता है।
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