दिल को दहला दिया
दिल को दहला दिया जब धमाके हुए
राजनीतिज्ञ के लिए बम पटाखे हुए
कहर बरपा रहे दुश्मनी के निशान
लाशें बिखरीं इस कदर तमाशे हुए
किसी की आँख से आंसूं को रोकोगे तुम
भाई के खून के भाई ही प्यासे हुए
किनसे नफरत करेंगीं वो बेटियाँ
पापा जिसके भी अल्लाह को प्यारे हुए
घर को लौटी हुई चप्पलों की सुनो
पाऊं उनके बैसाखी के सहारे हुए
"अमित सागर" बचपन से ही कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहे हैं । गुजरात में हाल ही में हुए बम धमाकों ने उन्हें विचलित किया और कविता की ये धारा निकल गई।
ब्लॉग: sagarami.blogspot.com
मेल: hindikavi.sagar@gmail.com
7 टिप्पणियाँ:
अमित जी आपने बहुत खूब लिखा है लकिन मे सोच रहा हूँ की आप अभी तक जिन्दा है क्यों नही फ़ुट पड़ती अपने देश मे भी कोई क्रांति की ज्वालामुखी ?
Bahut khoob.
Ghar ko lauti hui chappalon ki suno panw jinke baisakhi ke sahare hue.
अमित जी मैंने पिछले दिनों में आपको कई जगह पढ़ा है , आप समर्थ रचनाकार है , परन्तु इस ग़ज़ल में काफी मात्रा दोष हैं बंधू , बात सारी अच्छी है पर लगता है आप इस बार शिल्प पे कम ध्यान दे पाये हैं पहली झलक से सूझे कुछ सुझाव रख रहा हूँ , और उम्मीद करता हूँ की आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे
जैसे आपका पहला शेर है
दिल को दहला दिया जब धमाके हुए
राजनीतिज्ञ के लिए बम पटाखे हुए
अब इसी बात को इस तरह से पढ़ के देखें
"दिल दहल सा गया जब धमाके हुए
बम सियासत के खातिर पटाखे हुए
भाई ये ग़ज़ल बहुत अच्छी हो सकती है , पर अभी गुंजाइश है इसमे
नाराज नहीं होना मित्र , ये बेहतरी के लिए है विशवास करें , और हाँ अच्छा लगेगा यदि आप इस कमेन्ट पे अपनी , सशक्त प्रतिक्रया देंगे , मेरे ब्लॉग या ईमेल पे
डॉ . उदय 'मणि '
http://mainsamayhun.blogspot.com
umkaushik@gmail.com
भाई साहब केवल दंगो मे मुस्लिम लोग ही नही मरते बल्कि हिंदू भी मरते है और जख्म से खून ही बहता है इसलिए दुःख अन्तिम सच से पहले का पड़ाव है
उपरोक्त बहुत सुंदर लिखा है अमित ! मेरी शुभकामनायें !
आशा है आपकी कवितायें पढने को मिलती रहेंगी ! हर कविता हर रचयिता अपनी भावना के हिसाब से लिखता है, कविता के गुणदोष परिस्थिति और कवि के मूड के अनुसार ही होते हैं , महान एवं प्रतिष्ठित कवियों की हर कविता को कोई भी कवि अपनी भावना के अनुसार सुधार कर सकता है, :-) मगर यह मेरे हिसाब से बेहद अनुचित है ! ब्लाग जगत में तमाम तरह का लेखन हो रहा है फिर हमें हर मशहूर ब्लॉग पर जाकर अपने सुधार देने चाहिए !
कृपया लिखते रहें !
सतीश
"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.
साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.
अमित के. सागर
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