सोमवार, 4 अगस्त 2008

दिल को दहला दिया


दिल
को दहला दिया जब धमाके हुए
राजनीतिज्ञ के लिए बम पटाखे हुए

कहर बरपा रहे दुश्मनी के निशान
लाशें बिखरीं इस कदर तमाशे हुए


किसी की आँख से आंसूं को रोकोगे तुम
भाई के खून के भाई ही प्यासे हुए


किनसे नफरत करेंगीं वो बेटियाँ
पापा जिसके भी अल्लाह को प्यारे हुए


घर को लौटी हुई चप्पलों की सुनो
पाऊं उनके बैसाखी के सहारे हुए


"अमित सागर" बचपन से ही कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहे हैंगुजरात में हाल ही में हुए बम धमाकों ने उन्हें विचलित किया और कविता की ये धारा निकल गई


ब्लॉग: sagarami.blogspot.com
मेल: hindikavi.sagar@gmail.com



7 टिप्पणियाँ:

karmowala 7 अगस्त 2008 को 7:13 am बजे  
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
karmowala 7 अगस्त 2008 को 7:17 am बजे  

अमित जी आपने बहुत खूब लिखा है लकिन मे सोच रहा हूँ की आप अभी तक जिन्दा है क्यों नही फ़ुट पड़ती अपने देश मे भी कोई क्रांति की ज्वालामुखी ?

Asha Joglekar 7 अगस्त 2008 को 9:47 am बजे  

Bahut khoob.
Ghar ko lauti hui chappalon ki suno panw jinke baisakhi ke sahare hue.

डा ’मणि 8 अगस्त 2008 को 2:19 am बजे  

अमित जी मैंने पिछले दिनों में आपको कई जगह पढ़ा है , आप समर्थ रचनाकार है , परन्तु इस ग़ज़ल में काफी मात्रा दोष हैं बंधू , बात सारी अच्छी है पर लगता है आप इस बार शिल्प पे कम ध्यान दे पाये हैं पहली झलक से सूझे कुछ सुझाव रख रहा हूँ , और उम्मीद करता हूँ की आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे
जैसे आपका पहला शेर है
दिल को दहला दिया जब धमाके हुए
राजनीतिज्ञ के लिए बम पटाखे हुए
अब इसी बात को इस तरह से पढ़ के देखें
"दिल दहल सा गया जब धमाके हुए
बम सियासत के खातिर पटाखे हुए

भाई ये ग़ज़ल बहुत अच्छी हो सकती है , पर अभी गुंजाइश है इसमे
नाराज नहीं होना मित्र , ये बेहतरी के लिए है विशवास करें , और हाँ अच्छा लगेगा यदि आप इस कमेन्ट पे अपनी , सशक्त प्रतिक्रया देंगे , मेरे ब्लॉग या ईमेल पे
डॉ . उदय 'मणि '
http://mainsamayhun.blogspot.com
umkaushik@gmail.com

barbiteach 13 अगस्त 2008 को 9:44 am बजे  

भाई साहब केवल दंगो मे मुस्लिम लोग ही नही मरते बल्कि हिंदू भी मरते है और जख्म से खून ही बहता है इसलिए दुःख अन्तिम सच से पहले का पड़ाव है

Satish Saxena 16 अगस्त 2008 को 10:28 pm बजे  

उपरोक्त बहुत सुंदर लिखा है अमित ! मेरी शुभकामनायें !
आशा है आपकी कवितायें पढने को मिलती रहेंगी ! हर कविता हर रचयिता अपनी भावना के हिसाब से लिखता है, कविता के गुणदोष परिस्थिति और कवि के मूड के अनुसार ही होते हैं , महान एवं प्रतिष्ठित कवियों की हर कविता को कोई भी कवि अपनी भावना के अनुसार सुधार कर सकता है, :-) मगर यह मेरे हिसाब से बेहद अनुचित है ! ब्लाग जगत में तमाम तरह का लेखन हो रहा है फिर हमें हर मशहूर ब्लॉग पर जाकर अपने सुधार देने चाहिए !
कृपया लिखते रहें !
सतीश

Amit K Sagar 3 सितंबर 2008 को 6:05 am बजे  

"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.

साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.

अमित के. सागर

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