मुक्तक
(डॉ उदय 'मणि ' कौशिक)
"मुक्तक "
हमारी कोशिशें हैं इस, अंधेरे को मिटाने की
हमारी कोशिशें हैं इस, धरा को जगमगाने की
हमारी आँख ने काफी, बड़ा सा ख्वाब देखा है
हमारी कोशिशें हैं इक, नया सूरज उगाने की ...
चाहता हूँ ...
एक ताजी गंध भर दूँ
इन हवाओं में...
तोड़ लूँ
इस आम्र वन के
ये अनूठे बौर
पके महुए
आज मुट्ठी में
भरूं कुछ और
दूँ सुना
कोई सुवासित श्लोक फ़िर
मन की सभाओं में
आज प्राणों में उतारूँ
एक उजला गीत
भावनाओं में बिखेरूं
चित्रमय संगीत
खिलखिलाते फूल वाले
मृत हवाओं में ...
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1 टिप्पणियाँ:
बढि़या मुक्तक है।
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