उल्टा तीर पत्रिका 'जश्ने-आज़ादी-०८ '
जहाँ मन भय से मुक्त हो
आज़ादी के जश्न का अवसर है। कुछ तस्वीरे विचलित करने वाली हैं। महात्मा गाँधी की भूमि में बम के धमाके आंकवादियों के रोज़ ब रोज़ बढ़ता हौसला। जहाँ उन्मुक्त हवा में साँस लेना मुश्किल हो रहा है पेडों पर जिंदा बम मिल रहे है. या फ़िर महापुरुषों के चित्रों और मूर्तियों से सजे लोकतंत्र के पवित्र मन्दिर में रुपयों का नग्न प्रदर्शन। किसी भी भारतीय को सोचने पर मजबूर कर सकता है दरअसल, सच यह भी है कि देश में राजनीति (इसे ओछी राजनीति कहे तो का बेहतर होगा) का गिरता पड़ता स्तर इस रूप में भी हमारे सामने आ सकता है ऐसा किसी ने सोचा भी न होगा। धमाके के बाद राजनेता और दल आपस में आरोप प्रत्यारोप लगाने में जुट जाते है। राजस्थान के बम धमाके आरुषी हत्या कांड में दब जाते हैं। और चिन्तीय तथ्य यह भी कि एक बड़े दल की नेता को गुजरात कर्नाटक में हुए धमाकों के पीछे केन्द्र की साजिश नज़र आती है .क्या राजनीति इतनी बदहवास और लापरवाह हो सकती है . सत्ताधारी दल के कुंवर ने अपने भाषण में कलावती का उल्लेख क्या किया कि परमाणु ऊर्जा की कलावती प्रतीक बन गई। क्या वाकई एक आहिल्या का उद्धार हो गया . ऐसे तमाशे तो यूँ ही चलते रहेंगे . ऐसे ही अवसरों पर हमें गाँधी याद आते है . गाँधीजी आज नई पीढी के सामने "गांधीगिरी" के नवीन संस्करण में हैं। आज ज़रूरत है कि गाँधी को राजघाट से मुक्त कर घट घट में बसा लिया जाए. ताकि ऐसे अनैतिक माहौल में हमें एक हुतात्मा का संदर्भ अपने भीतर मिल सके .हम कौन थे ? क्या हो गए ?और क्या होंगे अभी !! हम सभी के जेहन सवालों की लम्बी फेहरिस्त है । चूँकि ये सवाल हमारे है तो जवाब ही हमें भी खोजने होंगे।समवेत स्वर से समवेत प्रयास से ।हमें ही मिलकर इन मसलों को मिलकर मसलना होगा । भय से मुक्त समाज और देश के निर्माण में हमें ही मिलकर कोशिश करनी होगी ।क्योंकि मुसीबतों का ढोल पीटने से बेहतर होता है उससे लड़ना। एक नए भारत को गढ़ने में आओ मिलकर छोटी छोटी कोशिश करे। घने अंधकार को चीरने के लिए प्रयासों के छोटे छोटे दिए रोशन करे। "जश्ने आज़ादी" की इस पत्रिका में आप सभी का स्वागत है। इस उम्मीद के साथ;हम सब की कोशिश इक रोज़ रंग ज़रूर लाएगी
ये ज़मी ये फिजा ये सूरत बदल जायेगी
वतन की वादियाँ गुलमोहर से महकेगी
नए माहौल में खुशियाँ घर घर में आयेगी
7 टिप्पणियाँ:
जी हा आप ठीक कह रहे है गांधी को घट घट मे बसा लिया जाये ताकी राजघाट को मुक्त कर उस पर प्लाट काट कर कुछ नोट बन सके. या माल भी बन सकती है , चलिये किसी ने तो उस जमी के बारे मे सोचा :)
SAGAR BHAI LAGE RAHO
JAI HINH
AACHI KOSHISH HAI
SUNIL KANDOLA
अमर हो गए आप जैसे लोग लकिन जिन्दा तो हर कोई नही हो सकता इसलिए अपनी अपनी जिम्मेदारी से भी समाज का आज कोई भला नही हो सकता कीचड़ मे फूल खिल भी जाए लकिन गंदे नालो मे तो साँप भी मर जाए
Sagar Bhai bahut achcha likha hai aapne jo wichar karane par badhya karata hai. such me jarurat hai Gandhiji ko ghat ghat men basane kee. Abhar.
बहुत ही सुंदर शब्दों से आपने अपनी जिम्मेदारी ली है की हम सब मिल कर देश के लिए बहुत कुछ कर सकते है और बहुत से आप जैसे लोग कर भी रहे है इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई
जीत कर भी हार गए मेरे देश के बलिदानी
मिली हमे जो आज़ादी निकम्मा कर दिया
खून मे नही रही वो रवानी
"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.
साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.
अमित के. सागर
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