फ़िर से क्या हो रहा है
ये आज चारों ओर फ़िर से क्या हो रहा है
इंसानियत का नाता किस ओर सो रहा है
अपने ही स्वार्थ वश हर मनुष्य जी रहा है
अपने ही साथियों का वो खून पी रहा है
पहले थी दोस्ती अब रंजिश पल रही है
धर्मों की आड़ में अब सच्चाई जल रही है
आओ हम सब मिलकर, इक शमां नई जलाएं
शमां की रोशनी में सबको दिशा दिखाएँ
नफरत सभी के दिल से मिलकरके हम मिटायें
मानवता का पथ सबको मिल करके हम पढाएं।
2 टिप्पणियाँ:
अच्छा प्रयाश है लकिन आरम्भ कहा से है देश भक्ति की मशाल किन हाथो मे ये भी पता चले
"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.
साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.
अमित के. सागर
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