रविवार, 3 अगस्त 2008

कील पुरानी है


मनोहर लाल 'रत्नम'
कील पुरानी है

नए साल का टंगा कलेंडर कील पुरानी है

कीलों से ही रोज़ यहाँ होती मनमानी है.

सूरज आता रोज़ यहाँ पर लिए उजालों को

अपने आँचल रात समेटे, सब घोटालों को


बचपन ही हत्या होती है, बहशी लोग हुए

और अस्थियाँ अर्पित होती गंदे नालों को


इन कीलों पर पीड़ा ही बस आनी जानी है

नए साल का टंगा कलेंडर कील पुरानी है


कीलों से उठाती धड़कन आवाज लगाती हैं

आँगन, गलियों, चौराहों से चीखें आती हैं

यहाँ अमीरी में नंगे तन सड़कों पर नांचें

मात-पिटा को तरुणाई भी आँख दिखाती है

यहाँ वासना के दलदल में फंसी जवानी है

नए साल का टंगा कलेंडर कील पुरानी है

दीवारों के कील पुराने हमें चिडाते हैं


दर्द देश का लोग यहाँ क्यों भूल जाते हैं.

मर्यादा की तोड़ के सीमा हम आगे बढ़ते हैं


फिल्मी तस्वीरें कीलों पर हम लटकाते हैं

अब देखा है, घर-घर की तो यही कहानी है

नए साल का टंगा कलेंडर कील पुरानी है

इन कीलों ने अपना इतिहास बनाया है

और यहाँ पर कीलों को हमने तद्पाया है

चकाचौंध के हम दीवाने हैं सारे 'रत्नम'

किलकारी को कीलों पर हमने लटकाया है.

सबसे केवल अपनी-अपनी रीत निभानी है

नए साल का टंगा कलेंडर कील पुरानी है


आप वीर-व्यंग हास्य कवि हैं। सम्प्रति दिल्ली में रहते हैं।


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