बेडियाँ तोडों
बेडियाँ तोडो
आज स्वतंत्रता दिवस है....दिन है आजादी का....
जब भी मैं इस सन्दर्भ में सोचता हूँ...
कुछ उत्सव मनाना चाहता हूँ....
परन्तु मेरे जेहन में एक सवाल उठता है ...
कौन स्वतंत्र है???
आजादी?????
किसकी???
जब भी ये दिन आता है...
मेरे हाँथ की उँगलियों में से एक उंगली ..
हर वर्ष मेरे ही ऊपर इशारा करती ...
कहती !!!
ये उत्सव का वक़्त नहीं...
अभी कोई जीत नहीं हूई...
उतसव आरोह की होती है अवरोह की नहीं...
हाँ कुछ कर सको तो मनन करो..
खुद पे!!!
कहाँ से तुम स्वतंत्र हो और कहाँ लोग स्वतंत्र हैं...
आज भी मनं की जंजीरों में जकडे हुए तुम पराधीन हो ..
जिसकी हालत अंग्रेजों से पराधीन होने होने से भी बुडी है...
कल तुम मन से पराधीन नहीं थे...सबल थे
पर आज तुम खुद से पराधीन हो....
अंग्रेज तो तुम्हारे अपने नहीं थे...
पर आज जो बेडियाँ तुम में बंधी है ,
वो तुमने खुद ही बांधी है...
उसे तोड़ो उसे तोड़ो !!!
वन्दे मातरम!!!
("स्वतंत्र भारत का एक गुलाम")
"सुमन राय" पेशेवर इजीनियर हैं। कविता और उत्तेजक बहस में भाग लेना प्रिय शौक है। आजकल हैदराबाद में है।
कौन स्वतंत्र है???
आजादी?????
किसकी???
जब भी ये दिन आता है...
मेरे हाँथ की उँगलियों में से एक उंगली ..
हर वर्ष मेरे ही ऊपर इशारा करती ...
कहती !!!
ये उत्सव का वक़्त नहीं...
अभी कोई जीत नहीं हूई...
उतसव आरोह की होती है अवरोह की नहीं...
हाँ कुछ कर सको तो मनन करो..
खुद पे!!!
कहाँ से तुम स्वतंत्र हो और कहाँ लोग स्वतंत्र हैं...
आज भी मनं की जंजीरों में जकडे हुए तुम पराधीन हो ..
जिसकी हालत अंग्रेजों से पराधीन होने होने से भी बुडी है...
कल तुम मन से पराधीन नहीं थे...सबल थे
पर आज तुम खुद से पराधीन हो....
अंग्रेज तो तुम्हारे अपने नहीं थे...
पर आज जो बेडियाँ तुम में बंधी है ,
वो तुमने खुद ही बांधी है...
उसे तोड़ो उसे तोड़ो !!!
वन्दे मातरम!!!
("स्वतंत्र भारत का एक गुलाम")
"सुमन राय" पेशेवर इजीनियर हैं। कविता और उत्तेजक बहस में भाग लेना प्रिय शौक है। आजकल हैदराबाद में है।
4 टिप्पणियाँ:
itni choti umar main itni geheri soch ....
गुलाम थे तो हमारे नेता हम कर ने देने के लिए कहते थे और आज सरकार हर वस्तु पर कर लेती है कभी कभी तो कई गुना कभी अनुमान लगाया है की इमानदारी से कर चुकाने वाला आजाद होने के बाद कितने कर चुकाता है समाज का कर आप ही भरो क्युकि सरकार तो कर चोरो के साथ है तभी तो सभी नेता और अधिकारी अक्सर C.A. की मदद लेते है और मुमकिन कर चुरा लेते है
जीत कर भी हार गए मेरे देश के बलिदानी
मिली हमे जो आज़ादी निकम्मा कर दिया
खून मे नही रही वो रवानी
"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.
साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.
अमित के. सागर
आतंकवादी एक अंगुली ऊपर उठाकर क्या इसारा करतें हैं ।
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