अनुत्तरित प्रश्नों के हल खोजने है
(आलेख :दीपक गोगिया)
अब फिर हम अपने देश के स्वतंत्रता दिवस की 61वी वर्षगाँठ मनाएंगे ! हर तरफ शुभकामनाओ और बधाईयो का ताँता लगेगा ! पर क्या आपने यह विचार किया है कि क्या हम सचमुच स्वतंत्र है ? क्या इसी स्वतंत्र भारत की कल्पना की गयी थी ? तकनीकी और औद्योगिक विकास की चाहे जो बाते की जाये, चाहे जो आँकडे पेश किये जाये, इसकी हक़ीक़त हम सभी जानते है ! नीचे लिखी पंक्तियो से स्पष्ट है---
लेकिन जनता है मोहताज
सब की आँखो मे आँसू
बह गई उल्टी गंगा आज
आज है अपनो का रोना
कल थे गैरो के मोहताज
किस किस की हम बात सुने
हर कोई है साहबे ताज
जिसके पसीने से है खिरमन
वह खुद रोटी को मोहताज
अपनी हुक़ूमत है फिर भी
भूके है कुछ काम न काज़
माना कि बरबाद हुए
मिल तो गया हमको स्वराज
हम वह माली है लोगो
बेच दे जो गुलशन की लाज !!!
परिस्थितियो की यही विडम्बना है कि भले ही आज हम पर कोई दूसरा देश शासन नही कर रहा, पर हम स्वतंत्र नही है ! हमारी मानसिकता गुलाम हो चुकी है और हमे गुलामी की आदत पड चुकी है ! इन विषम परिस्थितियो मे हो सकता है कि आप आज़ादी का जशन मना सके, पर मै तो शहीदो के सामने नम आँखो से शर्मसार खडा हूँ और उनके सपनो को टूटते हुए देख रहा हूँ ! याद कर रहा हूँ उन तमाम सैनिको और उनके परिवार के सदस्यो के बलिदान को जो मातृभूमि के लिये शहीद हो गये ! क्योंकि शायद आज का दिन उन्हे याद करने के लिये ही तय किया गया है और 16 अगस्त को उनको फिर से भुला दिया जायेगा अगले एक वर्ष के लिये ! जाइये आप जशन मनाइये ! मुझे तो अभी कुछ अनुत्तरित प्रश्नों के हल खोजने है !!
6 टिप्पणियाँ:
Bilkul Sahi Kaha Deepak. Vartmaan mein yahi sthiti hai !
कहने को है जनता राज
लेकिन जनता है मोहताज
सब की आँखो मे आँसू
बह गई उल्टी गंगा आज
Bahut hi sahi chitran kiya hai sir. Aaj Ham bhi sharmsaar ho gaye. Desh ke aajkal ke haalaat ke saamne !
is anuttarit prasn ka uttar hamen hi dena hai,
sahi likha,behtar likha
Sach kaha ! Aapke shabdo mein vyatha ki jhalak hai !
हम वह माली है लोगो
बेच दे जो गुलशन की लाज !!!
आपकी ये पंक्ति आप की द्वारा किए गए सभी सवालों का जवाब है
सबसे अहम् यदि आपके सवालों के जवाब मिले या न मिले तो भी संवाद कायम रखे जिससे इनके जवाब निकल आए एक दिन
"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.
साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.
अमित के. सागर
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