मंगलवार, 27 जनवरी 2009

आतंकवाद और हम









[शिमला
से प्रकाश बादल]
मत पूछो क्या है हाल शहर में।
ज़िन्दगी हुई है बवाल शहर में।

कुछ लोग तो हैं बिल्कुल लुटे हुए,
कुछ हैं माला-माल शहर में।

झुलसी लाशों की बू हर तरफ,
कौन रखे नाक पर रूमाल शहर में।

चोर,लुटेरे, डाकू और आतंकवादी,
सब नेताओं के दलाल शहर में।

भौंकते इंसानों को देखकर,
की कुत्तों ने हड़ताल शहर में।

मुहब्बत के मकां ढहने लगे,
मज़हब का आया भूंचाल शहर में।

बिना घूंस के मिले नौकरी,
ये उठता ही नहीं सवाल शहर में ।
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1 टिप्पणियाँ:

karmowala 1 फ़रवरी 2009 को 7:38 am बजे  

तस्वीर बदलने वाली है दोस्त
क्युकी इंसान अभी भी जिन्दा है हम सब मे यकीं नही होता

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