दहशतगर्द
[सखी सिंह]
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जिसके बनाए आग के गोले ने
सेकड़ों इंसानो को निगल लिया
उनमें किसकी क्या जाति थी
किसी को नही है पता
न ही उसको पता है कि उसने
किस किस जाति के इंसानों की जान ली
पता है सबको बस इतना भर
हर तरफ लाशों का हुज़ूम
बिखरे पड़े मानव अंग
खून ही खून और माँस के लोथडे
कोई इन सबको कैसे जुदा कर पायेगा
जाति के हिसाब से इनको बाँट पाएगा
यहाँ किसी को क्या पता है ये कि
कौन सा अंग किस जाति के इंसान का है
कितना खून या किस किस जगह फैला खून
किस जाति का है, कौन सा माँस का लोथड़ा
किस जाति के इंसान के शरीर से जुदा हुआ
या ये जान पाएगा की जुदा हुआ कौन सा हाथ
खुदा की इबादत में उठता था
या भगवान के आगे जुड़ता था
या फिर चर्च में जाकर ईशा की प्रार्थना करता था
यही हाल उन पैरों का है
जो मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे जाकर
अपने अपने पूज्य को पूजते थे
या उनकी प्रार्थना में जाकर शामिल होते थे
यहाँ सब छिन्न भिन्न हुआ पड़ा है
यहाँ बस खून है सबका जो एक है
मानव अंग हैं जिन्हे जाति में बाँटना
मुश्किल ही नही बल्कि नामुमकिन है
फिर हम कैसे कहें जिसने ये किया
वो एक मुसलमान है
वो तो एक दहशतगर्द है जिसका मकसद है
हमारा अमन चैन छीन दहशत फैलाना
मानवता का खून कर इंसानों को तड़पाना
वो तो ये भी नहीं जानता की खून का रंग क्या है
क्यों की उसका खून तो स्याह है
स्याह खून से वफ़ादारी की उमीद कैसे करें
हर रंग मिलके बनता है ये स्याह रंग
ऐसे ही हर धरम का खून बहा कर
उसका खून स्याह हो गया
उसमें न इंसानियत है न वो भाई बेटा या बाप है
वो तो एक दहशतगर्द है
जो मानवता पर लगा अभिशाप है
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3 टिप्पणियाँ:
मुझे आपकी रचना पढ़ कर अजीब सा लग रहा था इसलिए आपको बता दू की इक नारी जब इस तरह शत विक्षत मानव अंगो का वर्णन करे तो या वो डॉक्टर हो या फ़िर कोई पेशवर
ya wo koi savendansheel nari bhi ho sakti hai ....
kya ham jo dekhte hai hame dikhta anhi..varnan karne se hi kya hota hai
ankhe aur dil bhi to bhaut kuch kahta hai ...phir aatankbaad ka samna to har insaan kar raha hai..agar me ek nari hoke is tarah varnan kar sakti hun to iska matlab hai akrosh hai mere ander jisko bahar nikalna jaruri ho jata hai.
shukriya apne apna keemati waqt diya..
sakhi
Me salam karta hu tmhare jazbe ko sakhi ji
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