बेबस क्यूँ है इन्सान
[अमित सागर]
जलता हुआ पतंगा चीखा
जलता है क्यूँ ये शमशान
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
जूझ रही है लाचारी से
सहके सब भारत भूमि
कहाँ है सोने की चिडिया
पीछे जिसके दुनिया घूमी
दिन ढलते ही बुझ जाती है
आजादी की क्यूं ये मशाल
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
नम हैं दिल पत्थर हैं
चेहरे पर मायूसी हैं
देख रहें हैं डूबता सूरज
अधरों पर खामोशी है
हर इंसा के हाथो में है
दुश्मनी का ही पैगाम
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
नई सदी है नया दौर है
हाहाकार अब चारो और है
सामाँ मौत का हुआ है सस्ता
बर्बादी का बचा है रस्ता
नारी बेबस नर बेबस है
कौन सुखी है सब बेबस है
देते क्यूँ हमको इल्जाम
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
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जलता है क्यूँ ये शमशान
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
जूझ रही है लाचारी से
सहके सब भारत भूमि
कहाँ है सोने की चिडिया
पीछे जिसके दुनिया घूमी
दिन ढलते ही बुझ जाती है
आजादी की क्यूं ये मशाल
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
नम हैं दिल पत्थर हैं
चेहरे पर मायूसी हैं
देख रहें हैं डूबता सूरज
अधरों पर खामोशी है
हर इंसा के हाथो में है
दुश्मनी का ही पैगाम
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
नई सदी है नया दौर है
हाहाकार अब चारो और है
सामाँ मौत का हुआ है सस्ता
बर्बादी का बचा है रस्ता
नारी बेबस नर बेबस है
कौन सुखी है सब बेबस है
देते क्यूँ हमको इल्जाम
भारत की आज़ादी बोली
बेबस है क्यूँ ये इंसान
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ध्वनि संपर्क 09213589921
लेखक का ब्लॉग: http://sagaramit।blogspot.com/
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