बेचते हैं लोग बड़े शौक़ से मुफ़लिसी
भारत की गरीबी दुनिया के दुसरे मुल्को में कई बार बेची जाती है। आज भी दुनिया के अमीर देशों में लोगो की यह मानसिकता है कि भारत एक पिछड़ा हुआ देश है। जिस गरीब की गरीबी को बेचकर दौलतमंद और अधिक दौलतमंद हो जाते हैं। वो गरीब सिर्फ़ गरीबी पर अपने आँसू बहा सकता है । गरीबी सिर्फ़ अमीरों से बेची जा सकती है! गरीब के हिस्से सिर्फ़ मुफ़लिसी है। "उल्टा तीर" के संपादक "अमित के सागर" ने यही दर्द अपनी कलम से व्यक्त किया।
[अमित के सागर]
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बेचते हैं लोग बड़े शौक़ से मुफ़लिसी
बिकती नहीं मग़र मुफ़लिसों से कभी
नाचते हैं गाते हैं मनाते हैं ख़ुशी सभी
गरीबी के सौदागर हैं जो इल्म से धनी
गरीब बेचने भी ग़र गरीबी को निकलें
सारे बाज़ार में कोई खरीदता नहीं
बच्चे भूँख से मर जाएँ ये बात नई नहीं
बेचकर कोई इन्हें मग़र रौशनी करता कहीं
रोतों को देखकर लग जाते हैं जो रोने
ऐसा दिल गरीबी का कि रोए सागर भी
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संगठित हों, बुराई के ख़िलाफ़ ताकत बनें,
एक-दूसरे के साथ हों, महफूज़ हर कदम चलें।
एक-दूसरे के साथ हों, महफूज़ हर कदम चलें।
[संपादक उल्टा तीर]
16 टिप्पणियाँ:
Amit, gazab kee sundar, tahe dilse utaree, aur ubharee rachnaa hai he !
Kyon kar aur comments naheen ? Mai chahungee ke istarah kee rachnayen, poora blog jagat nahee ,balki poora desh padhe...!
Mujhe garv hai tumpe !
अमित जी आपने सच ही कहा है की गरीब अगर कुछ भी बेचे तो उसे बेचना भी नही आता बल्कि आमिर लोग जैसे आपकी रचना मई बच्चो के शोषण की जो बात आई है वो आज भारत वर्ष मई कुछ डॉक्टर लोगो के लिए विदेशी मुद्रा का बहुत बड़ा ओजार है जिसे आजकल गर्भ किराये पर देना भी कहते है
सलाम हिन्दुस्तान के सिपाही
आपकी कविता में भाव के साथ-साथ सशक्त विचार है...पढकर अच्छा लगा...ऐसे युवा चिंतकों की देश को जरूरत है...खैर मेरा नाम अपर्णा है...फिलहाल z24 घंटे 36 गढ़ में रिपोर्टर हूं आपको अपने ब्लाग पर देखकर खुशी हुई...
सादर
अपर्णा
अमित जी
आप गम्भीर है किन्तु अभी तेवर कडे नही है सत्य की राह पर कांटे ही कांटे है ।
आपके विचारों को पढकर खुशी हुई,लगता है हम जैसा सोचते है उसे समझने वालों की कमी नही....
bahut achchi rachna
sachchai ka aina hai !!!
badhai
कुछ देर रुककर सोचने को मजबूर करती है आपकी रचना। लिखते रहो।
WAHKAI LAJAWAAB RACHNA HAI
ROTO KO DEKHKAR..... A TRUE FACT
OF SENSATIONAL HEART
ROTO KO DEKHKAR.... TRUE FEELING OF A SENSETIONAL HEART
SUMAN SAGAR
अमित जी, गरीबी पर ये ख्याल भी समाअत फरमायें-
कुदरत से तो मिला था मुझे आईना मगर
इस दिल को हादसात ने पत्थर बना दिया
जोर-ओ-जफा-ओ-जुल्म-ओ-सितम से झुका नहीं
पर मुफलिसी ने आज मेरा सर झुका दिया
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आपने बिल्कुल सही कहा कि गरीबी बेची जा रही है और बेचने वाले भी और नहीं हमारे अपने ही हैं मेरा भाई अभी रशिया से आया तो उसने हमें बताया कि वहां हमारे देश के गरीब बच्चों के फोटो , झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों के फोटो ,फिल्म आदि हमारे यहाँ के लोग ही ले जाते हैं और फिर वहां जाकर उन्हें दिखाते है यहाँ तक कि indians के सामने ये तक कहा जाता है कि ''india is very poor country ''
अमित तुम्हारे द्वारा पोस्ट की गयी सामग्री से अभी-अभी गुजरा, मुझे तुमसे आगे भी ऐसी अच्छी रचनाओं की उम्मीद रहेगी. बधाईयां
मै श्री कर्मोवालां से सहमत हूँ । सुंदर रचना यथार्थ को बताती हुई ।
आपकी कविता में भाव के साथ-साथ सशक्त विचार है...पढकर अच्छा लगा.
bahut badhiya likha hai aapne
are bhaaii kuchh nayaa bhi to likho
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