अब जागना ज़रूरी है
[मुद्द्त हुई अंधेरे में, कोई रौशनी का दिया ना मिला
शहीद हुआ हर हिन्दुस्तानी, रोता है उसे क्या मिला]
[करमबीर पंवार]
ये कुछ पंक्ति मेरे दिल के जख्म की गहरी वेदना को कंही ने कंही व्यक्त
करती है। आज हम गर्व से कहते है कि आजाद है यहाँ लोगो की, लोगो के लिए,
लोगो के द्वारा चुनी हुई सरकार है। लेकिन क्या ये सरकार उन उम्मीदों को
पुरा कर पा रही है, क्या ये सरकार हमारी चुनी हुई है भी या नही ?
क्योंकि आज़ादी के साठ बरस बाद भी हम उस एक खता की सज़ा भुगत रहे जो हमने
नही की बल्कि उन चंद लोगो ने की जो हमारे रहनुमा थे या जिन्हें हम ने
अपने आदर्श नायको में शामिल कर रखा था। ये वो लोगो ही थे जिन्होंने युग
पुरूष गाँधी को भी राजनेतिक रूप से अलग-थलग कर दिया और वो सब होने लगा जो
वो चाहते थे।
आज भी पीढी दर पीढी उन्ही लोगो का राज है वो राजा न होकर भी राजा बन गए
है और उनके आने - जाने पर उनकी सुरक्षा के कारणों से आम आदमी को कुछ समय
तक गुलाम बना दिया जाता है व्यवस्था का।
क्या हम लोगो के पास राजनेतिक शक्ति नही जो हम बार -बार उन्ही लोगो को
चुनकर सरकार बनाने के लिए भेज देते है। ये अक्सर उन लोगो द्वारा बोले जाने
वाला झूठ है जिसको शक्ल हम और आप ही मिलकर देते है वास्तव मै न तो वो
ईमानदारी के साठ चुनाव चाहते है और न ही हम चुनाव रुपी झूठ का नकाब उतार
पाए है क्युकी जब तक हम सब मिलकर सही बुरे की पहचान करना नही जान जाते है
तब तक हमे ऐशे ही बरगलाया जाएगा कभी पीढी दर पीढी की सरपरस्ती के नाम पर
तो कभी जात -पात और धर्म के नाम पर।
ऐशा भी होता ,वैशा भी होता - जैसा भी होता
अच्छा होता है और अच्छे के लिए होता है
क्योंकि हम सब कुछ नही करेंगे और हमारी लाचार गूंगी -बहरी स्वार्थो में
गहराई तक उतरी सरकार भी कुछ नही करेगी क्योंकि तो कुछ करना ही नही
चाहती अगर वो कुछ करेगी की तो दुनिया बरबाद नही हो जायेगी?
सरकार कम से कम एक साथ लाखो -करोडो को बचा ही रही है चाहे सैकडो यु ही मरते रहे
जय हिंद न कहो मेरे भाई
क्योंकि हिंद का सर तो वर्षो पहले कट गया
जब इस देश के दो टुकड़े हमने कर लिए
अब ज़ख्म है तो रिस्ता ही रहेगा खून हिन्दुस्तान का
--
जागो वीर पुत्र जागो
--
शहीद हुआ हर हिन्दुस्तानी, रोता है उसे क्या मिला]
[करमबीर पंवार]
आपको ये बताने की कोई जरूरत नही की मै इस बहस का अंग बन चुका हूँ न चाहकर भी।
करती है। आज हम गर्व से कहते है कि आजाद है यहाँ लोगो की, लोगो के लिए,
लोगो के द्वारा चुनी हुई सरकार है। लेकिन क्या ये सरकार उन उम्मीदों को
पुरा कर पा रही है, क्या ये सरकार हमारी चुनी हुई है भी या नही ?
क्योंकि आज़ादी के साठ बरस बाद भी हम उस एक खता की सज़ा भुगत रहे जो हमने
नही की बल्कि उन चंद लोगो ने की जो हमारे रहनुमा थे या जिन्हें हम ने
अपने आदर्श नायको में शामिल कर रखा था। ये वो लोगो ही थे जिन्होंने युग
पुरूष गाँधी को भी राजनेतिक रूप से अलग-थलग कर दिया और वो सब होने लगा जो
वो चाहते थे।
आज भी पीढी दर पीढी उन्ही लोगो का राज है वो राजा न होकर भी राजा बन गए
है और उनके आने - जाने पर उनकी सुरक्षा के कारणों से आम आदमी को कुछ समय
तक गुलाम बना दिया जाता है व्यवस्था का।
क्या हम लोगो के पास राजनेतिक शक्ति नही जो हम बार -बार उन्ही लोगो को
चुनकर सरकार बनाने के लिए भेज देते है। ये अक्सर उन लोगो द्वारा बोले जाने
वाला झूठ है जिसको शक्ल हम और आप ही मिलकर देते है वास्तव मै न तो वो
ईमानदारी के साठ चुनाव चाहते है और न ही हम चुनाव रुपी झूठ का नकाब उतार
पाए है क्युकी जब तक हम सब मिलकर सही बुरे की पहचान करना नही जान जाते है
तब तक हमे ऐशे ही बरगलाया जाएगा कभी पीढी दर पीढी की सरपरस्ती के नाम पर
तो कभी जात -पात और धर्म के नाम पर।
ऐशा भी होता ,वैशा भी होता - जैसा भी होता
अच्छा होता है और अच्छे के लिए होता है
क्योंकि हम सब कुछ नही करेंगे और हमारी लाचार गूंगी -बहरी स्वार्थो में
गहराई तक उतरी सरकार भी कुछ नही करेगी क्योंकि तो कुछ करना ही नही
चाहती अगर वो कुछ करेगी की तो दुनिया बरबाद नही हो जायेगी?
सरकार कम से कम एक साथ लाखो -करोडो को बचा ही रही है चाहे सैकडो यु ही मरते रहे
जय हिंद न कहो मेरे भाई
क्योंकि हिंद का सर तो वर्षो पहले कट गया
जब इस देश के दो टुकड़े हमने कर लिए
अब ज़ख्म है तो रिस्ता ही रहेगा खून हिन्दुस्तान का
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जागो वीर पुत्र जागो
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लेखक समाज सेवा से जुड़े हैं व् "ग्लोबल रामराज्य मल्टीवर्सिटी व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र" के निदेशक हैं।
1 टिप्पणियाँ:
आपने जो सवाल उठाये है वो अब हमारी नई बहस का मुद्दा हो गए है आप जैसे लोगो का मार्गदर्शन मिलता रहे
आपने बहुत ही अच्छी तरह से विहारों को रखा है इसकी प्रशंसा अनिवार्य है
सधन्यवाद
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