मंगलवार, 23 सितंबर 2008

दिनकर एक परिचय

संक्षिप्त जीवन परिचय : ३० सितम्बर सन् १९०८ ई0 में बिहार प्रांत के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में जन्म २४ अप्रैल, १९७४ ई0. देहावसान.
पिता : श्री रवि सिंह
माता : मनरूप देवी

प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ:
रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतिज्ञा (सभी काव्य) अर्धनारीश्वर, वट पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय (निबंध): देश विदेश (यात्रा) आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हैं.

प्रमुख सम्मान: सन 1959 में पद्मभूषण (भारत सरकार द्वारा) सन 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने दिनकर जी को डी.लिट. की मानद उपाधि से सुशोभित किया उर्वशी पर इन्हे 1972 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

दिनकर जी के समग्र कृतित्व व् व्यक्तित्व का अवलोकन:
'दिनकर' जी का जन्म ३० सितम्बर सन् १९०८ ई0 में बिहार प्रांत के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था. इनके पिता अत्यन्त साधारण स्तिथि के किसान थे. 'दिनकर' जी जब केवल दो साल के थे, तभी इनके पिता का स्वर्गवास हो गया था. इनकी विधवा माता ने इनकी सिक्षा का प्रबंध किया. इन्होने पटना विश्वविद्यालय से सन् १९३२ ई- में बी.ए. (आनर्स) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. ये बड़े मेधावी थे. छात्र-जीवन से ही इनमें कविता के संस्कार अंकुरित हो गए थे. हाईस्कूल करने के बाद ही इनकी 'प्रण-भंग' नामक पुस्तक प्रकाशित हो गयी थी.

'दिनकर' जी हाईस्कूल के प्राधानाध्यापक से लेकर, बिहार सरकार के अधीन 'सब-रजिस्ट्रार', प्राचार-विभाग के उपनिदेशक, मुजफ्फरपुर स्नातकोत्तर कोलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष, राज्यसभा के सदस्य तभा भागलपुर विश्विद्यालय के कुलपति तक रहे थे. सन् १९६२ ई0 में भागलपुर विश्वविध्यालय ने इनको डी0 लिट0 की उपाधी से विभूषित किया था. भारत सरकार द्बारा ये पदमभूषण से भी अलंकृत हुए थे. इनकी रचना 'उर्वशी' पर इनको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था. २४ अप्रैल, १९७४ ई0 को हिन्दी साहित्य का यह दिन सदा के लिए अस्त हो गया.

सन् १९३३ ई0 में प्रकाशित 'हिमालय' नमक कविता दिनकर जी की पहली प्रसिद्द कवितात ही. इनकी रचनाओं में 'रेणुका', नीलकुसुम', 'सीपी और शंख', 'उर्वशी', 'परशुराम की प्रतीक्षा' और 'हारे को हरिनाम' कविता पुस्तकें तथा 'संस्कृति के चार अध्याय', 'अर्धनारीश्वर', 'रेती के फूल', 'उजली आग' आदि गध्य पुस्तकें प्रमुख हैं. इनका गद्ध भी उच्कोती का तथा प्रांजल है. राष्ट्रकवि के रूप में इन्हें 'रेणुका' से ही प्रसिद्धी प्राप्त हो गयी थे.

'दिनकर' जी की कविताओं में अतीत के प्रति प्रेम तथा वर्तमान युग की दयनीय दशा के प्रति असंतोष है. इनका मुख्य विषय अतीत का गौरव गान है तथा प्रगति और निर्माण के पथ पर अग्रसर होने का संदेश देना है. इनकी कविता में गरीबी के प्रति सहानुभूती और पूंजीवाद के प्रति आक्रोश के भावना भी है. 'दिनकर' जी की अधिकाँश कविताओं में राष्ट्रीयता की भावना है तथा कुछ कविताओं में विश्व-प्रेम की झलक है. इनके अन्तिम कविता-संग्रह 'हारे को हरिनाम' से इनके भक्ति की ओर मुड़ने का संकेत मिलता है.

'दिनकर' जी की भाषा सशक्त, प्राभ्शाली एवं प्रांजल खड़ी-बोली है. भाषा में संकृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू-फारसी के प्रचिलित शब्दों का प्रयोग भी मिलता है. इनका चित्रण भावपूर्ण तथा कविता का एक-एक शब्द आकर्षक होता है. इन्होने अपने प्रबंध काव्यों में व्यास-शैली, जातिवादी रचनाओं में भावात्मक शैली और उद्बोधन गीतों में गीति शैली का प्रयोग किया है. इनके काव्य में सभी रसों का समावेश है, पर वीर रस की प्राधानता है. इनके काव्य में विदिध छंदों की सरगम सुनाई देती है. इन्होने कवित्व, सवैया को नवीनता प्रदान की है और अधिकतर आधुनिक छंदों का प्रयोग किया है. इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, द्रष्टान्त, निर्दार्शना आदि साद्रश्य्मूलक अलंकारों के अतिरिक्त छायावादी अलंकार-पद्धती का भी सफल प्रयोग देखने को मिलता है.

नवीन चेतना और जनमानस में देश-भक्ती की लहरें उठाने वाले गद्धय और पद्धय में समान अधिकार से लिखने वाले 'दिनकर' जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि थे. हिन्दी साहित्य आपकी सेवाओं के लिए सदाव ऋणी रहेगा।

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