मंगलवार, 23 सितंबर 2008

आधी आबादी का आधा आकाश


('रामकृष्ण डोंगरे' हिन्दी ब्लोगिंग जगत में एक सशक्त हस्ताक्षर हैंसम्प्रति अमर उजाला दिल्ली में उप संपादक पद पर कार्यरत हैंरामकृष्ण डोंगरे की इस कविता में आधी आबादी की हसरतें आधे आकाश की बजाय पूरा आकाश पाने की हैडोंगरे ने जब ये कविता पाने कालेज में सुनाई तो उसका विवरण भी यहाँ दिया हैआधी आबादी पूरा आकाश पाना चाहती है शायद यही सही है)



हम आधा आकाश मांगते हैं ।
अपने लिए
जगह एक खास मांगते हैं ।

अंधेरों को चीर के रख दें,
ऐसा एक प्रकाश मांगते हैं ।

पुरुषों तुमसे हम
अपने लिए विश्वास मांगते हैं ।

हमें भी दो मौका कुछ कर गुजरने का ।
हमें स्थान तुमसे आगे नहीं चाहिए
स्थान हम अपना पास -पास मांगते हैं ।

अपने लिए नहीं
इस दुनिया के विकास के लिए
आधा आकाश मांगते हैं ।

आधा आकाश मंगातें हैं ।
अपने लिए जगह एक खास मांगते हैं ।


(ये कविता साल दो हजार तीन की तेरह फरवरी को छिंदवाडा मध्य प्रदेश में लिखी गई थी । मैं उस वक्त कॉलेज में था । जब मैंने इसे स्टेज से सुनाया तो महिलाओं की ओर से आवाज आई ... हमें पूरा आकाश चाहिए । मतलब साफ है... आधी आबादी को अपना आकाश चाहिए ....वे सिर्फ़ पाना चाहती है ... खोने के लिए उनके पास कुछ नहीं ... सो उनके लिए आधा आकाश ...रामकृष्ण डोंगरे )
लेखक का ब्लॉग:

http://dongretrishna.blogspot.com


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