शनिवार, 2 अगस्त 2008

पहले बने हिन्दुस्तानी



बनें हिन्दुस्तानी

(क़तर में रहने वाले अली के जज्बात)


मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि "हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई इन सब में सबसे पहले हम इक़ हिन्दुस्तानी हैं. हमें इन सब चीज़ों से ऊपर उठकर सोचना चाहिए.

हम क्यों इन चक्करों में पड़े रहते हैं, कुछ राजनीतिक नेताओं के बहकावे में आके हम भूल जाते हैं कि सबसे पहले हम हिन्दुस्तानी हैं. हमें अपने ऊपर गर्व होना चाहिए कि हम हिन्दुस्तानी हैं.

मैं यहाँ कतर में बहुत से देशों के लोगों से मिला, बँगला देश, पाकिस्तान, श्रीलंका, इटली, निगेरिया, ईग्पट, फिलीपिंस, अरबी, अमेरिकन्स आदि, इन सभी से मैंने बात करके मैंने पाया कि वाकई हिन्दुस्तान बेस्ट है. दरअसल उन लोगों के पास कोई संस्कृति नहीं है. ये सब देखने के बाद मैं खुद को गर्वित महसूस करता हूँ। हिन्दुस्तान को प्यार करता हूँ।


हवेली झोपडी सबका मुक़द्दर फूट जाएगा
अगर हाथ से दामन-ऐ-शराफत छूट जाएगा
राम का मन्दिर हो या खुदा-ऐ-पाक का घर
ईमारत कोई भी टूटी
तो सारा हिन्दुस्तान टूट जाएगा।


अली कतर में Daewoo Engineering and Construction में Admin Assistant के पद पर कार्यरत हैं


5 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा 2 अगस्त 2008 को 11:58 am बजे  

बहुत सुन्दर विचार,धन्यवाद

Hari Joshi 2 अगस्त 2008 को 10:41 pm बजे  

न किसी का दिल टूटे आैर न इमारत ढहे। अगर टूटे तो नफरत का बुलंद दरवाजा जिसकी लकडि़यों को जलाकर सेकी जाती हैं वोटो की रोटियां।
http://irdgird.blogspot.com

Unknown 3 अगस्त 2008 को 5:46 am बजे  

bahut sunder likha hai. khastor par vo shayri to bahut achi hai ki "sara hindustan toot jaye ga". is blog ke liye aap ko badhai ho.

karmowala 10 अगस्त 2008 को 3:34 am बजे  

क्या भारत की पहचान किसी से कम है ये तो पहले से ही विश्वबंधुता के नारे के साथ जिया है बस कुछ दो सौ साल की गुलामी ने इसे जमीं के तरफ़ खीचा है नही तो आज भी भारतीय होना गर्व की बात है आपका कहना सही
हवेली झोपडी सबका मुक़द्दर फूट जाएगा
अगर हाथ से दामन-ऐ-शराफत छूट जाएगा
लकिन आपकी दूसरी पंक्ति कुछ अतिवादी सोच का परिणाम नज़र आती है
मिट जाए जहाँ से नाम हमारा मुमकिन नही है हस्ती ही हमारी ऐसी है टुकडो मे नज़र आती है ये तेरा भ्रम है

Amit K Sagar 3 सितंबर 2008 को 6:23 am बजे  

"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.

साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.

अमित के. सागर

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