सोमवार, 4 अगस्त 2008

"जो है उससे बेहतर चाहिए..."

"उलटा तीर" के बारे में"

मेरी नज़र में "उल्टा तीर" समाज और देश के हालत को बेहतर बनने की एक छोटी सी कोशिश है .हालाँकि उल्टा तीर अभी शैशव अवस्था में ही है .एक नन्हा शिशु या एक छोटी सी परवाज़ जो उन्मुक्त गगन में उड़ने के लिए आतुर है . समाज में अपनी भूमिका और योगदान को परिभषित करना किसी के लिए भी जटिल हो सकता है .समाज की हर इकाई अपने अपने स्तर पर समाज के लिए अपना योगदान देती है . इस लिहाज से हमारी ये कोशिश फूलों का हार नही लेकिन फूलों का एक गुलदस्ता ज़रूर है . ये गुलदस्ता आप और हम सब मिलकर बनाते है .यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है .यही इसकी खासियत भी है . मुझे पूरा यकीन है आज नही तो कल ये फूल (यानी हम और आप) मिलकर एक माला अवश्य बन जायेंगे .


हिन्दी भाषा में बहस के लिए वेब के मकड़जाल में एक मंच की कमी थी . "उल्टा तीर" इसी कमी को पूरा कराने की दिशा में एक पहल है .बहस का विचारों का यह उत्तेजक मंच दरअसल
, समाज को कुंठा से मुक्त करने का प्रयास भी .इसमे मुद्दों का चयन भी इसी को दृष्टिगत रखकर किया जाता है . उल्टा तीर में यूँ तो अब तक केवल बहस के तीन मुद्दे ही प्रकाशित हुए है .लेकिन ये सभी मुद्दे ऐसे थे जिन पर समाज बोलने के लिए अरसे से आतुर था . आंग्ल भाषा में बहस के लिए कई मंच है . इस भाषा में बोलने वाले लोगो की तादात भी ज़्यादा है . इस नाते हिन्दी में बहस का ब्लॉग तैयार करना कई मायनों में चुनौती पूर्ण था . उल्टा तीर ने इस चुनौती को स्वीकार किया . आपका सहयोग और इसे मिलाने वाला प्रतिसाद इस बात की गवाही है कि समाज अपनी बोली में खुलकर बोलना चाहता है .आख़िर ऐसा कौन है जो समाज को बेहतर बनता देखना नही चाहता ? उल्टा तीर समाज का सामूहिक उदघोष है , समाज के हलक से बेहतरी के लिए निकली आवाज़ है।

अमित के. सागर



4 टिप्पणियाँ:

karmowala 7 अगस्त 2008 को 7:10 am बजे  

आपने जो भी किया या कर रहे हो वो मुझे तो सही लग रहा है लकिन इस प्रयाश को बीच राह मत छोड़ देना सागर जी क्योकि नदी अगर सागर मे न मिले तो वो मर जाती है

barbiteach 13 अगस्त 2008 को 9:36 am बजे  

हिन्दी भाषा मे लेख लिखकर आपने एक मशाल तो जला ही दी है आपका ये यकीन की आज नही तो कल ये फूल (यानी हम और आप) मिलकर एक माला अवश्य बन जायेंगे .सच साबित हो ऐसे शुभ इच्छा हमारी भी है

Unknown 16 अगस्त 2008 को 11:41 pm बजे  

मंच प्रदान करने के लिए धन्यवाद
क्या भारत की पहचान किसी से कम है ये तो पहले से ही विश्वबंधुता के नारे के साथ जिया है बस कुछ दो सौ साल की गुलामी ने इसे जमीं के तरफ़ खीचा है लकिन अगर हम केवल युवा वर्ग आज ये ठान ले की देश को नित नई उचाई पर पहुचना है तो बिल्कुल ये सब बहुत आसन है

Amit K Sagar 3 सितंबर 2008 को 6:04 am बजे  

"उल्टा तीर" पर आप सभी के अमूल्य विचारों से हमें और भी बल मिला. हम दिल से आभारी हैं. आशा है अपनी सहभागिता कायम रखेंगे...व् हमें और बेहतर करने के लिए अपने अमूल्य सुझाव, कमेंट्स लिखते रहेंगे.

साथ ही आप "हिन्दी दिवस पर आगामी पत्रका "दिनकर" में सादर आमंत्रित हैं, अपने लेख आलेख, कवितायें, कहानियाँ, दिनकर जी से जुड़ी स्मृतियाँ आदि हमें कृपया मेल द्वारा १० सितम्बर -०८ तक भेजें । उल्टा तीर पत्रिका के विशेषांक "दिनकर" में आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

साथ ही उल्टा तीर पर भाग लीजिये बहस में क्योंकि बहस अभी जारी है। धन्यवाद.

अमित के. सागर

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