सोमवार, 4 अगस्त 2008

उनका पोस्टर


"उनका पोस्टर"
(श्री बालकवि बैरागी)


मेरे शहीदों!
आज तक मैंने किसी से नहीं कहा
कि
तुम्हारी शहादत के
बाद भी
तुम्हारे नाम पर
मैंने कितना कुछ सहा!!


यूँ तो मेरा सर
हमेशा नीचा है
तुम्हारे सामने
लेकिन बीसवीं सदी का
सबसे बड़ा अपराधी

(वह भी तुम्हारा)
बना दिया है
मुझे राम ने!!


मैं ख़ुद को
तुम्हरा निर्लज्ज अपराधी
घोषित करता हूँ
माँगता हों तुमसे
कठोर सज़ा
कि-
तुम जब गाड़ कर
आकाश पर मेरी ध्वजा
वापस नहीं लौटे
तब-
उन्होंने मेरी दीवार पर
अपना पोस्टर
बड़े दर्प से चिपकाया
और मुझे चेताया

"देखो"!


यह पोस्टर
लेई या गोंड से नहीं
शहीदों के खून से
चिपका रहे हैं
ससम्मान रखवाली करना
इस पोस्टर की
हम दूसरी दीवार की
तलाश में जा रहे हैं!!"
अब-
दीवार मेरी
पोस्टर उनका
और खून तुम्हरा
मातम मेरे घर
और उनके घर
बेषम खुशियों का फव्वारा!!


मैं चीखना चाहता था
पर चीख नहीं पाया
इस कायर भीड़ से
अलग दीख नहीं पाया!
मेरे शहीदों
!


मेरी दीवार पर
उनके पोस्टर के पीछे लगा
तुम्हारा खून पपडा रहा है
और यह पपडाता लहू
मुझे न जाने कौन कौन से पाठ
पढा रहा है
?


"श्री बाल कवि बैरागी" हिन्दी कविता के सुपरिचित कवि हैं राजनीति को अपना कर्म और साहित्य को अपना धर्म मानाने वाले कवि श्री बालकवि बैरागी का प्रारंभिक जीवन विपन्नता में बीता .संघर्ष कर जीवन को ऊँचा कैसे उठाया जाता है .बालकवि जी इसकी जीवंत नजीर हैं



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