रविवार, 3 अगस्त 2008

बाबा धरणीधर की एक रचना

"मध्य भारत के सुप्रसिद्ध कवि पत्रकार बाबा समपंत राव धरणीधर हिन्दी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर हैं । बाबा ताउम्र साहित्य साधना में लीन रहे ।मानव समाज मानवीय मजबूरियों को उन्होंने करीब से पढ़ा है .अपने शिल्प में बड़े ही संजीदा ढंग से उसे कहा भी है .बाबा ने छिंदवाडा के गरीब आदिवासियों पर भी लिखा । गजल संग्रह " किस्त किस्त जिंदगी "कविता और लोकगीतों का संग्रह " महुआ केशर "कविता संग्रह - नहीं है मरण पर्व नहीं है (संस्करण - प्रथम - २००३) प्रमुख कविताये टाइटल कविता मरण पर्व के अलावा,भोपाल गैस कांड ,दिल्ली ,मेरा मध्यप्रदेश ,२१ वीं सदी के लिए ,भूख - भरे पेट की ,किस आंधी का शोर हुआ है ,आदमी ,क्यों मौसम बेइमान हुआ है ,बस्ती आदि बाबा की सुविख्यात रचनाये हैं । आदमी क्यूँ भूखा है ? रचना में बाबा ने भूखे पेट की मजबूरी को बयां किया है । "


आदमी क्यूँ भूखा है ?



क्या इस पर तुमने कभी कुछ सोचा है
कि रोटी के पहाड़ पर बैठ कर भी
आदमी क्योँ भूखा है .

.....
रोटी की भूख कोई बहुत बड़ा मसला नहीं
जब चाहो हल हो सकता है ,
पर कुछ ऐसी भी होती हैं क्रूर हवस की भूखें
चला न जिनपे कभी किसी का काबू
और आगे चल सकता है

(कविता - भूख -भरे पेट की)


साहित्यकार बाबा स्व. श्री संपतराव धरणीधर
(जन्म १० मार्च , १९२४ और निधन १५ मई , २००२)

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