सोमवार, 4 अगस्त 2008

सुभद्राकुमारी चौहान जी का आवाहन

"वीरों का हो कैसा वसन्त"

"सुभद्रा जी ने जब भी लिखा वीरता का रस पन्नों से होके दिलों तक बह गया . सुभद्रा जी की रचनाओं में वीरता परिलक्षित होती है .वीर रस से परिपूर्ण युवा पीढी को उनका एक आवाहन"(संकलन: रचना अंजुम)


गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण
;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का हो कैसा वसन्त


कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग
;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का हो कैसा वसन्त


हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड
;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का हो कैसा वसन्त

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं
;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का हो कैसा वसन्त


(सुभद्रा कुमारी चौहान)


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