शनिवार, 2 अगस्त 2008

बच्चों की कहानियाँ


बहादुर बच्चा



छटा मुग़ल सम्राट औरंगजेब (१६५९-१७०७) शायद ही किसी का मित्र होगा. किंतु कूटनीतिक कारणों से उसे भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न राज्यों के राजकुमारों को बर्दास्त करना पड़ता था और उनके साथ दोस्ती का बहाना बनाना पड़ता था.राजस्थान के एक राज्य जोधपुर को वह हड़पना चाहता था. लेकिन वहाँ के शासक महाराजा यशवंत सिंह उस पर भरी पड़ रहा था.

जब एक बार महाराजा अपने बेटे प्रथ्वीसिंह के साथ अपने आगरा भ्रमण के दौरान शिष्टाचार वश मुग़ल सम्राट से मिलाने गया, तब उसने महाराजा को अपने बाग़ की शानदार चीजें दिखाईं. महाराजा ने उनकी तारीफ़ की. लेकिन जब औरंगजेब ने बाग़ के एक कौने में रखे एक बड़े पिंजडे की ओर ध्यान दिलाया तब महाराजा ने कोई रूचि नहीं दिखाई. सम्राट को इस पर बेहद आश्चर्य हुआ. क्योंकि पिंजडे में उसकी एक बहुत ही महत्वपूर्ण संपत्ति थी- एक विकराल हष्ट-पुष्ट डरावना बाघ.

"महाराजा, क्या आपने एसा विशाल पशु देखा है? इसकी दहाड़ सुनकर बहादुर से बहादुर भी सर पर पॉव रखकर भाग खड़े होंगे" मुग़ल सम्राट ने अपनी राय दी.

यशवंत सिंह ने बाघ पर केवल एक सरसरी नज़र डाले और पूछा, "आप कैसे बहादुर की बात कर रहे हैं, सम्राट? हमारे राज्य में एसे जानवरों से तो हमारे बच्चे खेला करते हैं.!

"हा हा!" औरंगजेब ठठाकर हंसा.

"क्या आपको विश्वास नहीं होता?"

महाराजा ने गंभीरता से कहा.

"क्या आप ख़ुद इसमें विश्वास करते हैं? आपके धन्य जोधपुर का कोई लाल इसकी पूंछ भी छू ले तो क्या वह अपनी जान बच्चा पायेगा?"

उसने हंसी उडाते हुए पूछा.

"आपको अपने संदेह के लिए धन्यवाद,"

महाराजा ने कहा. फ़िर उसने अपने युवा पुत्र प्रथ्वीसिंह की ओर देखा.

राजकुमार प्रथ्वीसिंह संकेत समझ गया. वह तुंरत पिंजडा खोलकर उसमें घुस गया. क्रुद्ध बाघ तुंरत उस पर टूट पड़ा. राजकुमार ने उसके मुंह पर एक घूंसा मरा और बाघ चारों कौन चित्त जा गिरा. लेकिन यह आरम्भ मात्र था. अवाक औरंगजेब विस्फारित नेत्रों से देखता रहा की कैसे राजकुमार बाघ से तब तक लड़ा जब तक बाघ निष्प्राण होकर ढेर नहीं हो गया. वह शान से पिंजडे से बाहर निकला हालांकि उसके शरीर पर लगे घावों से रक्त बह रहा था.

बादशाह को, बुरी तरह शर्मिंदा होने पर भी, राजकुमार की, उसके साहस, बल, कौशल तथा पिटा की आज्ञाकारिता के लिए, तारीफ़ करनी पडी. महाराजा अपने बेटे को चिकत्सा से के लिए अपने खेमे में ले गया और वह शीघ्र ही चंगा हो गया।

लेकिन औरंगजेब अपने मान भंग से मुक्त न हो सका. उसने बाद में धोखे से राजकुमार की हत्या करवा दी. इसकी एक अलग कहानी है.


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